Parthnandan Veer Saubhadra
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किसी भी देश का इतिहास उसकी सभ्यता व संस्कृति का दर्पण होता है। भारतीय इतिहास व संस्कृति के वैभवशाली अतीत में जाने कितने मोती माणिक्य जड़े हैं। उन्हीं दैदीप्तमान मणियों के बीच पार्थनन्दन वीर सौभद्र की अकथनीय दीप्ति को मैंने पुस्तक में छन्द बद्ध करने छन्दबद्ध का प्रयास किया है। मैने छन्दों के माध्यम से बताने का प्रयास किया है कि अर्जुन व सुभदा के पुत्र अभिमन्यु का किस प्रकार जन्म हुआ, अभिमन्यु की शिक्षा किस प्रकार हुई। सोलह वर्षीय पार्थनन्दन सौभद्र ने महाभारत के युद्ध में किस प्रकार चक्रव्युह में प्रवेश कर युद्ध के बड़े-बड़े महारथी पण्डितों के दॉत खट्टे कर दिये। किस प्रकार वह महावीर कायर महारथियों के छल कपट का शिकार होकर वीरगति को प्राप्त हुआ। हो सकता है मेरा यह प्रयास अधूरा या त्रुटियों से युक्त हो। परन्तु मुझे सुधी व विद्वान पाठकगणों से यहाँ आशा है कि वे मेरी छोटी-मोटी त्रुटियों को सुधाकर काव्य के मूल उद्देश्य को ग्रहण करेंगे।
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