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Marghat

339.00

प्रिय पाठक ! जीवन में जब मुझे बोध हुआ उस समय मैं धर्मसंकट में था। मैंने अपने परिवार को खूब प्रेम देना चाहा लेकिन परिवार के साथ ही यह समस्त संसार भी मेरा परिवार है। लेकिन यदि मैं मेरी जननी और पिता एवं भाई बहन को छोड़ विश्व कल्याण की ओर जाता हूं तो एक सवाल मेरा स्वयं से रहेगा कि मैंने अपने परिवार के लिए क्या किया? ईश्वर का अनुभव में लेखनी के माध्यम से दे सकता हूं, इसी लिए मैंने लेखनी को चुना और लेखनी के माध्यम से ही मैं अपने दोनों कर्तव्य निभाऊंगा। परिवार को कभी आर्थिक समस्या न देखनी पड़े इसके लिए पहली तीन रचनाएं “मरघट, ZIN, शिव का आनन्द रूप” का मूल्य मेरे परिवार के लिए होगा एवं जीवन ज्योति बनेगी संसार के लिए। और उसके बाद की सभी स्वनाएं शिव को समर्पित है जीव कल्याण को समर्पित है। || सभी रचनाए शुन्य में लिखी गई है तो इन्हें एकांत में ही पढ़े ||

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