Hindi Ke Sahityakaro ka Atmkatha Sahitya – Samikshatmak Aaklan

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किसी भी इमारत की खूबसूरती उसकी नींव पर आधारित होती है क्यों कि नींव ही वह आधार होती है जिस पर कोई भी स्तम्भ खड़ा होता है। उसी तरह मेरे शोध प्रबन्ध की नींव एम० फिल० हिन्दी के अध्ययन के दौरान पड़ी। शोध प्रविधि एक विषय के रूप में पढ़ा तथा लघु शोध प्रबन्ध लिखा । उस शोध प्रविधि के अध्ययन एवं लघु शोध प्रबन्ध ने मुझे विस्तृत शोध अध्ययन की प्रेरणा प्रदान की। एम० फिल० हिन्दी में गोल्ड मेडल प्राप्त करने के पश्चात् तो मेरे इस सपने को जैसे पंख लग गये आत्मबल बढ़ा एवं शोध कार्य करने का मानस बना लिया। हिन्दी साहित्य की सशक्त विद्या आत्मकथा लिखना कोई शगल नहीं है अपितु रेल पर नंगे पांव चलने की जिद है और अंधेरे के खिलाफ लड़ने की जुर्रत भी. आत्मकथा कोई नारा या पोस्टर नहीं है, वह जीवन संघर्ष से उपजी एक संश्लिष्ट विधा है। आत्मकथा लेखन अब जीवन के इतिहास का कलात्मक प्रस्तुतीकरण मात्र नहीं है बल्कि विचारधारा की अभिव्यक्ति, समाज परिवर्तन की दिक सूचक है। जिन्दगी की गहराईयों से निकली और बेजोड़ शिल्प से भुनी हुई सच्ची कथा ही आत्मकथा है।

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