CHANDRALI
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हे चन्द्रर मुझे प्यार का हुनर नही है। प्यार का ढोंग करने वाले विश्वास घातियों ने विशवास का संकट खडा़ कर दिया है। तथाकथित भद्रलोक की दीवारें, विरोधाभासी कार्यों की कहानी कहती है। निज गौरव का मान चन्द्रलोक की पारदर्शी दीवारें ही बचा सकती है। भद्रलोक दूसरों के गौरव का मान को कब का नष्ट कर चुका है। दयनीय वासना मे जीने वाले टिम-टिमाने वाले तारे अभी भी भ्रम मे है कि गगनराज उन्हे प्यार करते है। प्रकाशहीन होते जा रहे तारों ने स्वांन्त्रता का भ्रम पाल रखा है। जबकि वो अभी भी अपनी मर्जी से प्यार के सहयात्री का चयन करने स्वंत्रत नही है। यह निर्णय गुरू की सलाह से है। निर्णय का पालन सेनापति मंगल से कराते है। विलम्बित न्याय के लिए धीरे चलने वाले न्यायधीश बुद्विजीवी को जिम्मेदारी सौप रखी है। राहु-केतु, धूम-केतु के रूप मे गुन्डों की फौज है।
AVINASH SAXSENA –
very nice
SHYAM KUMAR JHA –
NICE BOOK OF STORY