Aarzi Khayal

149.00

लेखक के कलम से मेरे लिए इस किताब को लिखना बहुत ज़रूरी था, क्योंकि कहीं से तो शुरुआत करनी ही थी। जब पुराने विचारों की बाल्टी खाली होगी तभी तो उसमें नए विचार आएंगे। किनारे पे बैठ कर समंदर की गहराई का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता। इसलिए मैने गोता लगा दिया, देखते हैं कहां तक तैर पाता हूं। “आरज़ी ख़याल” वो ख़याल जो क्षणिक हैं । वो ख़याल जो बहते जा रहे हैं । वो ख़याल जिनका कोई छोर नहीं कोई ठोर नहीं। वो ख़याल जो मेरे मन में आए और इससे पहले की वो निकल जाएं मैने उन्हें लिख लिया । वो ख़याल जो एक दूसरे की बात सुनके या पढ़ के, वक़्त के साथ विकसित होते हैं । उम्मीद करूंगा की मेरे ख़याल भी आपके आरज़ी ख़याल को छेड़ेंगे ज़रूर । मुझको भाषा और लिखने के प्रारूप के बारे में बहुत ज़्यादा अनुभव नहीं है, मैं अभी सीख ही रहा हूं। लेकिन मैने अपनी तरफ़ से कोशिश की हैं, उम्मीद करता हूं सबका प्यार मिलेगा । इस किताब की लिपि हिंदी है और भाषा बोल चाल वाली है। चलिए साथ में सफ़र पे चलते हैं।।

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